श्रीरामचरित मानस: ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी
रामचरितमानस की चौपाई “ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” का सही और अर्थपूर्ण मतलब क्या है ?
सुंदर कांड की इस चौपाई को लेकर तुलसीदास जी की कई बार आलोचना हो चुकी है। बहुत सारे तथाकथित ज्ञानियों ने समय समय पर अपने हिसाब से अपनी सुविधानुसार इसकी व्याख्या की है और तुलसीदास जी को नारी विरोधी करार दिया है। सारा विवाद “ताड़ना” शब्द का है।
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सामान्य समझ की बात है कि अगर तुलसीदास जी स्त्रियों से द्वेष या घृणा करते तो रामचरित मानस में उन्होंने स्त्री को देवी समान क्यों बताया? और तो और- तुलसीदास जी ने तो-
एक नारिब्रतरत सब झारी। ते मन बच क्रम पतिहितकारी।
अर्थात, पुरुष के विशेषाधिकारों को न मानकर दोनों को समान रूप से एक ही व्रत पालने का आदेश दिया है।
सिर्फ इतना ही नहीं सुरसा जैसी राक्षसी को भी हनुमान द्वारा माता कहना, कैकेई और मंथरा भी तब सहानुभूति का पात्र हो जाती हैं जब उन्हें अपनी गलती का पश्चाताप होता है ऐसे में तुलसीदासजी के शब्द का अर्थ स्त्री को पीटना अथवा प्रताड़ित करना है ऐसा तो आसानी से हजम नहीं होता।
पूरा प्रसंग (Prasang) क्या है:
दरअसल ये पूरा का पूरा प्रसंग तब का है जब प्रभु श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने हेतु प्रस्थान करते हैं। रास्ते में समुद्र मिल जाता है। उस पार जाने के लिए रास्ता चाहिए था सो भगवान राम समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना करते रहे मगर समुद्र नहीं सुना। तब जाकर भगवान क्रोधित होते हैं और समुद्र को सुखाने के लिए तीर कमान पे चढ़ा लेते हैं। भयभीत होकर समुद्र उपस्थित होता है और ये चौपाई कहता है…..
प्रभु मल किन्ही मोहि सिख दीन्ही।मरजादा पुनि तुम्हरी किन्हीं।।
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी।सकल ताड़ना के अधिकारी।।
अर्थात: प्रभु, आपने अच्छा किया कि मुझे शिक्षा दी और सही रास्ता दिखाया। किंतु मर्यादा ( जीवों का स्वभाव ) भी आपकी ही बनाई हुई है। क्योँकि ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी ये सब शिक्षा तथा सही ज्ञान के अधिकारी हैं।
यहाँ तुलसीदास जी के ताड़ना कहने का अर्थ है – जाँच – परख अथवा देख – रेख न कि मारना – पीटना।
- पहला शब्द ढोल है: ढोल से अगर मधुर और ताल बंध ध्वनि निकालनी है तो उसे कठोरता से पीटना होगा। जब तक ढोल को ताड़ा नहीं जाता अर्थात जब तक उसे पीटा नहीं जाता तब तक वह बजता नहीं है अर्थात उसमें से आवाज नहीं निकलती।
- दूसरा शब्द है गवांर: गवांर से यहां पर मतलब गांव में रहने वाला नहीं है,अपितु एक ऐसा व्यक्ति होना है जो ज्ञान होते हुए भी अशिक्षित, असभ्य और अत्यंत मूर्ख व्यक्ति होता है। गवांर व्यक्ति नासमझ होता है उसे हर विषय बार बार बताना पड़ता है नहीं तो वह जीवन को मूर्खता से खत्म कर देगा उसे तारणा यानि समझा कर कसना पड़ता है।
- तीसरा शब्द है शूद्र: यहां पर शूद्र का मतलब शूद्र जाति नहीं है, यहां पर मतलब है कर्म से नीच व्यक्ति अर्थात घटिया आदमी। अब आप लोग खुद ही देख सकते हैं कि कोई भी अपराधी, आतंकवादी, चोर, लुटेरे, गुंडे आदि यह सब शूद्र ही तो है। इनको तो विशेष रुप से प्रताड़ित करना चाहिए ताकि यह सही मार्ग पर आएं।
- चौथा शब्द है पशु: पशु जिनमें जिद्दी पन ज्यादा होता है उन्हें भी कठोरता से सम्हालना पड़ता है। कभी-कभी तो पशु सब कुछ ठीक होते हुए भी दिशाहीन होने के कारण ठीक से काम नहीं करते, इसीलिए इनसे काम निकालने वाले व्यक्ति जैसे कि किसान या घुड़सवार को इन्हें मारना पड़ता है।
- और पांचवा शब्द है नारी: नारी के मनोभावों को ज्ञात करने हेतु “ताड़ना “होता है न कि मारना-पीटना। जहाँ तक नारी का प्रश्न है तो वह माँ, बेटी, पत्नी, बहन तथा वधु के समकक्ष अन्य सम्बन्धों के रूप में हमारे साथ होती है। वह गृहलक्ष्मी होती है और परिवार का केंद्र बिंदु होती है। माता सीता ने लक्ष्मण रेखा रुपी मर्यादा का उल्लंघन किया तो उन पर कितनी विपत्ति आई और उसके कितने विध्वंशक परिणाम आये। परिवार का केंद्र बिंदु बनने के लिए कड़ा व उत्तम प्रशिक्षण व अंकुश की आवश्यकता होती है। सम्मान व सुरक्षा के लिए मर्यादा अनिवार्य होती है इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास जी ने ताड़ना शब्द का प्रयोग किया है।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेख लोक मान्यताओं, हमारे पूज्य साधु संत और महान कथा वाचकों के दिए गए ज्ञान पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए AbhinavQuotes.Com उत्तरदायी नहीं है।