श्रीरामचरित मानस: धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी ||
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी ||
श्रीरामचरित मानस के इस चौपाई का सही और अर्थपूर्ण मतलब क्या है?
तुलसीदास का कहना हैं कि जब आपकी परिस्थिति ठीक न हो तो उस वक्त धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा होती है। क्योंकि अच्छे वक्त में सभी लोग आपके साथ होते हैं। बुरे वक्त में नारी यानि कि पत्नी की भी परीक्षा होती है।
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धीरज (Dheeraj) : तुलसीदास जी की इस रचना का अर्थ है कि जब हम पर कोई विपत्ति आती है, तभी हमें पता चलता है कि हमारे अंदर कितना धीरज है । कोई परेशानी यदि आती है तो ऐसे में धैर्य धारण करते हुए सही निर्णय लेना चाहिए । धीरज ही हमें समाज में मान-सम्मान के शिखर तक पहुंचा सकता है।
धर्म (Dharam): हम पर विपत्ति आने पर ही हमें पता चलता है कि हम अपने धर्म पर कितनी दृढ़ता से खड़े हैं । दुख या विपत्ति के समय हमें यह देखना चाहिए कि हम किसी भी तरह अधर्म के मार्ग पर ना जाए। अधर्म का मार्ग अर्थात् बेइमानी, दुराचार, व्यभिचार आदि। हमें इन जैसे अधार्मिक और नैतिक पतन के मार्ग पर चलने से बचना चाहिए।
मित्र(Mitra): विपत्ति आने पर ही पता चलता है कि हमारे किसी मित्र की मित्रता कितनी सच्ची है और कितनी झूठी। सुख में तो सभी साथ देते हैं। जो दुख में साथ दे वही हमारा सच्चा हितैषी है। आपत्ति के समय जो मित्र सहयोग करते हैं वे ही सच्चे मित्र होते हैं। मित्र ही होते है जो आपको किसी भी मुश्किल से आसानी से निकाल सकते हैं।
नारी (Nari): श्रीरामचरित मानस के अरण्यकांड में अनुसुइया और सीता की भेंट का प्रसंग है। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनवास के समय अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे थे। यहां देवी सीता की भेंट माता अनुसुइया से हुई थी। इस प्रसंग में अनुसुइया ने वैवाहिक जीवन में ध्यान रखने योग्य बातें सीता को बताई थीं।
अनुसुइया ने कहा कि एक स्त्री के लिए उसके माता-पिता, भाई-बहन सभी ध्यान रखने वाले होते हैं, लेकिन इनकी भी एक सीमा होती है। स्त्री के लिए उसका पति ही असीम सुख देने वाला होता है। इसीलिए पत्नी को अपने जीवन साथी का हर कदम साथ देना चाहिए। बुरे वक्त में नारी यानि कि पत्नी की भी परीक्षा होती है। अगर किसी स्त्री का पति वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और गरीब भी है तो उसे अपने पति का पूरा सम्मान करना चाहिए। निस्वार्थ भाव से अपने जीवन साथी से प्रेम करना चाहिए और समर्पण का भाव बनाए रखना चाहिए।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेख लोक मान्यताओं, हमारे पूज्य साधु संत और महान कथा वाचकों के दिए गए ज्ञान पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए AbhinavQuotes.Com उत्तरदायी नहीं है।